Supreme Court ने उत्तराखंड सरकार को म्यूटिनी के दोषी रोहित चतुर्वेदी की सजा में छूट देने के मामले पर जल्दी विचार करने के लिए अंतिम समय सीमा दी है। अगर राज्य सरकार इस पर निर्णय लेने में देरी करती है, तो कोर्ट दोषी की जमानत याचिका पर विचार करेगा। यह याचिका हिंदी कविता की मशहूर लेखिका मधुमिता शुक्ला की हत्या से संबंधित है, जिसमें यूपी के पूर्व मंत्री अमरमानी त्रिपाठी का नाम सामने आया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तराखंड सरकार को इस मामले में अपना फैसला लेने के लिए अधिकतम एक सप्ताह का समय दिया गया है।
मधुमिता शुक्ला हत्याकांड: मामला क्या था?
मधुमिता शुक्ला की हत्या 9 मई 2003 को लखनऊ के पेपर मिल कॉलोनी में हुई थी, जब वह गर्भवती थीं। वह एक कवियित्री थीं और उनके और अमरमानी त्रिपाठी के बीच संबंध थे, जिनकी वजह से यह मामला और भी सनसनीखेज हो गया। यह घटना उस समय चर्चा का विषय बन गई, जब यह खुलासा हुआ कि त्रिपाठी के राजनीतिक और व्यक्तिगत संबंधों के कारण इस हत्या को अंजाम दिया गया था। त्रिपाठी को सितंबर 2003 में गिरफ्तार किया गया था और इसके बाद कई अन्य आरोपियों को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया।
सीबीआई द्वारा की गई जांच और सजा
मधुमिता शुक्ला की हत्या की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने की थी, और मामले की सुनवाई उत्तराखंड में की गई थी। जांच में यह पाया गया कि यह हत्या एक सुनियोजित साजिश के तहत की गई थी, और इसके पीछे राजनीतिक दबाव और व्यक्तिगत रिश्ते थे। कोर्ट ने मामले में दोषी पाए गए आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इन दोषियों में रोहित चतुर्वेदी भी शामिल थे, जो कि हत्या की साजिश में शामिल थे।
सजा में छूट के लिए याचिका
अब रोहित चतुर्वेदी ने अपनी सजा में छूट के लिए उत्तराखंड सरकार के पास याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड सरकार को इस मामले पर विचार करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजने से पहले उचित कदम उठाने चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस मामले में कोई देरी होती है, तो वह आरोपी की अंतरिम जमानत पर विचार करेगी।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और समय सीमा
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जवल भुयान शामिल थे, ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि राज्य स्तर की समिति की सिफारिश सरकार के पास एक सप्ताह के भीतर पहुंचनी चाहिए। इसके बाद राज्य सरकार को दो सप्ताह के अंदर उचित कदम उठाने चाहिए। राज्य सरकार को अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को तीन दिन के भीतर भेजनी होगी, और केंद्रीय सरकार को राज्य सरकार की सिफारिश प्राप्त होने के बाद एक महीने के अंदर निर्णय लेना होगा।
अंतरिम जमानत का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उत्तराखंड सरकार द्वारा इस मामले में कोई देरी होती है, तो अदालत आरोपी की अंतरिम जमानत की याचिका पर विचार करेगी। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि उन्हें यह लगता है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई देरी हो रही है, तो वे आरोपी की अंतरिम जमानत के बारे में याचिका पर विचार करेंगे।
आरोपियों को मिली थी आजीवन कारावास की सजा
इस हत्याकांड के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में भारी हलचल मची थी। अमरमानी त्रिपाठी और अन्य दोषियों के खिलाफ साक्ष्य पेश किए गए थे, जिससे यह साबित हुआ कि मधुमिता शुक्ला की हत्या एक योजनाबद्ध साजिश के तहत की गई थी। CBI ने पूरी जांच की और कोर्ट में दोषियों को सजा दिलवाने में सफलता पाई। कोर्ट ने सभी दोषियों को आजीवन कारावास की सजा दी थी, जिसमें मुख्य आरोपी अमरमानी त्रिपाठी भी शामिल थे।
राजनीतिक दबाव और व्यक्तिगत संबंध
मधुमिता शुक्ला की हत्या ने उत्तर प्रदेश की राजनीति को भी एक नई दिशा दी थी। अमरमानी त्रिपाठी उस समय के प्रभावशाली नेता थे और उनके व्यक्तिगत संबंधों का यह मामला राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया। आरोप था कि त्रिपाठी और शुक्ला के बीच अफेयर था, और जब शुक्ला गर्भवती हो गईं, तो त्रिपाठी ने अपने राजनीतिक करियर को बचाने के लिए उसे मारने का फैसला किया।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक अहम कदम उठाते हुए उत्तराखंड सरकार को आदेश दिया कि वह मामले की सिफारिश पर जल्द से जल्द निर्णय ले। अदालत ने यह भी सुनिश्चित किया कि इस मामले में कोई भी देरी नहीं होनी चाहिए और यह समय सीमा के भीतर निपटाया जाए। यह कदम यह दिखाता है कि सुप्रीम कोर्ट अपराधियों को सजा दिलवाने के साथ-साथ सरकारों को भी इस तरह के मामलों में जल्दी फैसला लेने की दिशा में प्रेरित कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उत्तराखंड सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस आदेश के अनुसार समय सीमा के भीतर इस मामले का हल निकालती है या नहीं। यदि सरकार इसमें कोई देरी करती है, तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से आरोपी की अंतरिम जमानत की याचिका पर विचार किया जा सकता है। इस मामले में पूरी प्रक्रिया के तेजी से निपटने के लिए कोर्ट ने समयसीमा तय की है, जो एक सकारात्मक कदम साबित हो सकता है।