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Tamil Nadu सरकार ने Supreme Court में उठाया गवर्नर की बिल्स को मंजूरी देने में देरी पर सवाल, कहा- ‘लोकतंत्र की विफलता

by pranav tiwari
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Tamil Nadu सरकार ने Supreme Court में उठाया गवर्नर की बिल्स को मंजूरी देने में देरी पर सवाल, कहा- 'लोकतंत्र की विफलता

Tamil Nadu सरकार ने Supreme Court में गवर्नर आरएन रवि द्वारा विधानसभा से पास किए गए बिल्स को दूसरी बार मंजूरी देने से मना करने को लेकर गंभीर चिंता जताई है। राज्य सरकार का कहना है कि यह लोकतांत्रिक प्रणाली की विफलता का संकेत है, जो नागरिकों और राज्य के लिए संकट पैदा कर रहा है। तमिलनाडु सरकार ने यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया है, और इस पर न्यायालय ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस विवाद के कारण राज्य और जनता दोनों को नुकसान हो रहा है।

राज्य सरकार की ओर से दलील

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला सुनवाई के लिए 4 फरवरी को प्रस्तुत किया गया, जब वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने राज्य सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा। मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान के तहत, जब राज्य विधानसभा कोई बिल पास कर देती है, तो गवर्नर के पास उस बिल को मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। उन्होंने कहा, “अगर गवर्नर उस बिल को दूसरी बार भी मंजूरी नहीं देते, तो यह हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली की विफलता है।” मुकुल रोहतगी का यह भी कहना था कि गवर्नर को संविधान के नियमों का पालन करते हुए बिल को तुरंत मंजूरी देनी चाहिए, ताकि राज्य में कोई असमंजस न हो और सरकारी कामकाजी व्यवस्था बाधित न हो।

Tamil Nadu सरकार ने Supreme Court में उठाया गवर्नर की बिल्स को मंजूरी देने में देरी पर सवाल, कहा- 'लोकतंत्र की विफलता

राज्य सरकार की नजर में गवर्नर का रवैया

तमिलनाडु सरकार ने गवर्नर रवि पर आरोप लगाया है कि वे जानबूझकर राज्य विधानसभा द्वारा पास किए गए बिल्स की मंजूरी में देरी कर रहे हैं, जिससे राज्य में कानूनों को लागू करने में गंभीर अड़चने उत्पन्न हो रही हैं। राज्य सरकार का कहना है कि यह स्थिति विशेष रूप से तब गंभीर हो जाती है जब बिल दूसरी बार विधानसभा में पास होने के बाद भी गवर्नर द्वारा बिना मंजूरी के लौटाए जाते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा, “यह मुद्दा संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण है, और यह तय होना चाहिए कि अगर गवर्नर बिल को दूसरी बार विधानसभा में पास होने के बाद मंजूरी नहीं देते, तो राष्ट्रपति से विचार करने का विकल्प पहले ही तय किया जाना चाहिए था।”

गवर्नर के पास क्या विकल्प हैं?

संविधान के मुताबिक, जब राज्य विधानसभा किसी बिल को पास करती है, तो गवर्नर के पास उसे स्वीकार करने या उसे वापस भेजने का विकल्प होता है। अगर गवर्नर द्वारा कोई बिल वापस भेजा जाता है और विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो गवर्नर को उसे मंजूरी देने की बाध्यता होती है। इस प्रक्रिया को भारतीय संविधान ने स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। ऐसे में अगर गवर्नर उसे फिर से रोकते हैं या किसी प्रकार की देरी करते हैं, तो यह राज्य सरकार के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।

तमिलनाडु सरकार के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उठाए जाने के बाद, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता व्यक्त की। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की कि राज्य और जनता दोनों को गवर्नर और राज्य सरकार के बीच चल रहे इस विवाद का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। कोर्ट ने यह माना कि अगर यह स्थिति लंबी चलती है, तो यह संविधान और लोकतंत्र के लिए एक गंभीर समस्या बन सकती है।

गवर्नर और राज्य सरकार के बीच विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ था जब तमिलनाडु विधानसभा ने कुछ महत्वपूर्ण बिल्स पास किए थे, जिन्हें गवर्नर रवि ने पहले मंजूरी नहीं दी। इसके बाद, इन बिल्स को फिर से विधानसभा में पास किया गया, और जब वे गवर्नर के पास पहुंचे, तो गवर्नर ने उन्हें फिर से वापस कर दिया। तमिलनाडु सरकार का आरोप है कि गवर्नर जानबूझकर इन बिल्स को मंजूरी देने में देरी कर रहे हैं, जिससे राज्य में कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन बाधित हो रहा है।

गवर्नर के इस रवैये पर राज्य सरकार ने 2023 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सरकार का कहना है कि इस देरी से प्रशासन में अस्थिरता उत्पन्न हो रही है और सरकार के कामकाजी कार्यक्रमों को प्रभावित किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 6 फरवरी को तय की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पहले राज्य सरकार के वकील और फिर गवर्नर के वकील, एटर्नी जनरल आर.वेंकटरामणि की दलीलें सुनी जाएंगी। यह मामला भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। अदालत का रुख यह संकेत देता है कि वह राज्य और गवर्नर के बीच इस संवैधानिक विवाद का समाधान ढूंढने के लिए तत्पर है।

संविधान और लोकतंत्र पर असर

यह पूरा विवाद भारतीय संविधान की परिभाषा के तहत लोकतंत्र की प्रक्रिया और उसके कर्तव्यों के पालन की परीक्षा है। अगर गवर्नर द्वारा किसी बिल को बार-बार लौटा दिया जाता है, तो यह लोकतांत्रिक प्रणाली की खामियों को उजागर करता है, क्योंकि विधानसभा ने जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के रूप में अपना निर्णय लिया है। ऐसे में गवर्नर का रुकावट डालना यह दर्शाता है कि संविधान की प्रक्रियाओं को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है।

तमिलनाडु सरकार और गवर्नर के बीच यह विवाद केवल राज्य के लिए ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि संविधान और लोकतांत्रिक प्रणाली की सही कार्यप्रणाली सुनिश्चित नहीं की जाती है, तो यह पूरे देश के नागरिकों और लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकती है, जो यह सुनिश्चित कर सके कि संविधान के अनुच्छेदों का पालन किया जाए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत किया जाए।

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