भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने हाल ही में अपनी महत्वाकांक्षी NVS-02 सैटेलाइट को निर्धारित कक्षीय स्थिति में स्थापित करने में एक बड़ा झटका अनुभव किया। इस मिशन में इस्तेमाल किए गए स्पेसक्राफ्ट के थ्रस्टर्स के काम न करने के कारण यह प्रयास सफल नहीं हो सका। रविवार को इसरो ने इसकी जानकारी दी और इस स्थिति के बारे में विस्तार से बताया। NVS-02 सैटेलाइट भारत के स्वदेशी उपग्रह-आधारित नेविगेशन सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था, जिसे 29 जनवरी को GSLV-Mk 2 रॉकेट के माध्यम से लॉन्च किया गया था। यह ISRO का श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से 100वां लॉन्च था, जो एक मील का पत्थर था।
ISRO ने अपनी वेबसाइट पर दी जानकारी
इसरो ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर इस मामले में अपडेट जारी करते हुए बताया कि NVS-02 सैटेलाइट को इच्छित कक्षा में स्थापित करने का प्रयास विफल हो गया, क्योंकि स्पेसक्राफ्ट में लगे थ्रस्टर्स काम नहीं कर पाए। इसके बावजूद, इसरो के वैज्ञानिक अभी भी इस सैटेलाइट का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए तलाश रहे हैं, ताकि इससे कुछ जानकारी प्राप्त की जा सके। हालांकि, अब जो काम इसके लिए भेजा गया था, वह संभव नहीं हो पाएगा। इसरो के अनुसार, सैटेलाइट अभी भी सुरक्षित है और वर्तमान में एक अंडाकार कक्षा में चक्कर लगा रहा है।
यह था ISRO का इस साल का पहला मिशन
इसरो के लिए यह मिशन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह 2023 का पहला प्रमुख मिशन था और इसके साथ ही ISRO के नए अध्यक्ष, वी नारायणन की अगुवाई में पहला लॉन्च था। 29 जनवरी को सुबह 6:23 बजे, ISRO ने NVS-02 सैटेलाइट को GSLV-F15 रॉकेट के माध्यम से श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। इस लॉन्च को इसरो की 100वीं लॉन्चिंग के रूप में भी जाना गया। हालांकि, अब थ्रस्टर की तकनीकी खराबी के कारण इस मिशन को एक बड़ा झटका लगा है।
NVS-02 सैटेलाइट की विशेषताएँ
NVS-02 सैटेलाइट की कुल वजन 2250 किलोग्राम था और इसकी पावर हैंडलिंग क्षमता 3 किलowatt थी। यह सैटेलाइट NVS श्रृंखला का दूसरा सैटेलाइट है और इसे भारतीय उपग्रह-आधारित नेविगेशन सिस्टम (Indian Satellite Navigation System) के तहत महत्व प्रदान किया गया था। इसमें स्वदेशी और आयातित रुबिडियम एटॉमिक घड़ियाँ स्थापित की गई थीं, ताकि यह सही और सटीक समय का अनुमान लगा सके। इसकी अनुमानित जीवनकाल 12 वर्ष है, लेकिन इस तकनीकी खराबी के कारण इसके कार्यक्षेत्र में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
ISRO के वैज्ञानिकों का समाधान तलाशने का प्रयास
इसरो के वैज्ञानिक अब इस सैटेलाइट के लिए वैकल्पिक उपयोग की तलाश कर रहे हैं, ताकि इसका उपयोग कुछ अन्य प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जा सके। हालांकि, मुख्य उद्देश्य के लिए जो कार्य इसे भेजा गया था, वह अब संभव नहीं होगा। इसरो के अधिकारियों ने कहा कि वे इस सैटेलाइट के साथ कुछ अन्य प्रयोग करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि इसका पूरा उपयोग किया जा सके।
तकनीकी खराबी का कारण
थ्रस्टर की असफलता के कारण, यह मिशन अब अपनी निर्धारित कक्षा में स्थापित नहीं हो पा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, थ्रस्टर की विफलता के कारण सैटेलाइट की गति और दिशा को नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है। इस तकनीकी समस्या का समाधान निकालने के लिए इसरो के वैज्ञानिक अब अतिरिक्त प्रयास कर रहे हैं, ताकि सैटेलाइट से कुछ उपयोगी जानकारी प्राप्त की जा सके।
ISRO की सफलता और चुनौतियाँ
यह मिशन इसरो के लिए एक मिश्रित अनुभव साबित हुआ है। जहां एक ओर यह ISRO का 100वां लॉन्च था, वहीं दूसरी ओर इसके बाद की तकनीकी समस्या ने इस लॉन्च की सफलता को प्रभावित किया। इसरो ने इस लॉन्च को लेकर काफी उम्मीदें जताई थीं, क्योंकि यह भारत के स्वदेशी उपग्रह-आधारित नेविगेशन सिस्टम के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
हालांकि, इसरो इस मिशन में आई विफलता से निराश नहीं है और आगे के प्रयासों में जुटा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि भविष्य में ऐसे तकनीकी मुद्दों पर काबू पाया जाएगा और आगामी मिशनों में सफलता प्राप्त होगी।
इसरोकी NVS-02 सैटेलाइट के मिशन में आई विफलता, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के लिए एक चुनौतीपूर्ण मोड़ है। हालांकि, सैटेलाइट का उपयोग अब अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए संभव नहीं हो सकेगा, लेकिन इसरो के वैज्ञानिक इस तकनीकी समस्या के समाधान के लिए प्रयासरत हैं। इस घटना से यह भी सिद्ध होता है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में कोई भी मिशन जोखिम और चुनौती से मुक्त नहीं होता। इसरो ने हमेशा कठिनाइयों को पार कर सफलता प्राप्त की है, और इस बार भी इसके वैज्ञानिकों का प्रयास जारी रहेगा।
यह मिशन और इसकी विफलता इसरोके लिए एक महत्वपूर्ण सीख है, और इससे भारतीय अंतरिक्ष मिशनों की तकनीकी क्षमता और भविष्य के दृष्टिकोण को लेकर नए रास्ते खुल सकते हैं।